3000 फुट ऊंची पहाड़ी पर बसा भगवान शिव का प्राचीन हर्षनाथ मंदिर । 4K । दर्शन 🙏

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भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और हार्दिक अभिनन्दन... भक्तों आज हम आपको अपने कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से एक ऐसे स्थान की यात्रा पर लेकर जा रहे हैं जहां स्वर्ग के सभी देवता एकत्रित होकर भगवान शिव की शरण लिए थे, और भगवान शिव सभी देवताओं को हर्षित कर हर्षनाथ हो गए। भगवान शिव का वो मंदिर अब हर्षनाथ के नाम से प्रसिद्ध है.

मंदिर के बारे में:
भक्तों हर्षनाथ मंदिर हर्ष या हर्षगिरि पहाड़ी के तलहटी में बसे हर्षनाथ गाँव में स्थित है। यह मंदिर सीकर जिले का एक ऐतिहासिक मंदिर है जो सीकर मुख्य शहर से लगभग 21 किमी दक्षिण-पूर्व में है। हर्षनाथ मंदिर के नाम से मशहूर यह दिव्य स्थान आसपास ही नहीं, पूरे देश के श्रद्धालुओं की गहरी आस्था और अगाध श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। हर्षनाथ मंदिर के पास बहुत से प्राचीन मंदिरों के खंडहर हैं। ये खंडहर लगभग एक हज़ार वर्ष पुराने हैं।

स्थानीय जनश्रुति:
भक्तों स्थानीय जनश्रुति के अनुसार यह स्थान पूर्वकाल में 36 मील के घेरे में बसा हुआ था। इन मंदिरों के पास एक काले पत्थर पर उत्कीर्ण शिलालेख प्राप्त हुआ है, जो किसी पौराणिक आख्यान की भांति है क्योंकि ये शिलालेख शिवस्तुति से प्रारम्भ होकर पौराणिक कथा के रूप में वर्णित है।

मंदिर का इतिहास:
भक्तों 3,000 फुट ऊंचे हर्षगिरि पर स्थित हर्षनाथ का यह मंदिर, महामेरु शैली में निर्मित है। इस मन्दिर के निर्माण का कार्य विक्रम सम्वत् 1013 आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी सोमवार से प्रारम्भ होकर 1030 विक्रम सम्वत को पूरा हुआ था। ये मंदिर चौहान शासक विग्रहराज प्रथम के शासनकाल में भावरक्त नामक एक शैव संत ने बनवाया था।

मंदिर की वास्तुकला:
भक्तों सुविख्यात हर्षनाथ मंदिर की वास्तुकला पूर्णतः प्राचीन वैदिक वास्तु विज्ञान पर आधारित है। इसके स्तम्भों की संरचना व नक़्क़ाशी अद्भुत है। इस मंदिर में एक गर्भगृह, अंतराल, कक्ष, आसनयुक्त रंगमंडप एवं अर्द्धमंडप बनाए गए हैं, इनके साथ साथ एक अलग मंडप भी है जिसे नंदी मंडप कहते हैं पहले यह मन्दिर एक भव्य, दिव्य व विशाल शिखर से परिपूर्ण था जो अब खंडित हो चुका है।

खंड खंड से झाँकती प्राचीन भव्यता:
भक्तों हर्षनाथ मंदिर वर्तमान खंडित अवस्था में भी कई देवी-देवताओं, नर्तकों, संगीतज्ञों, योद्धाओं, कीर्तिमुख प्रतिमाओं और दृश्यों के उत्कृष्ट शिल्प कौशल में न केवल उल्लेखनीय है बल्कि अनुपम भी है। इस मन्दिर के पास ही ऊंचे स्थान पर उत्तर मध्यकालीन एक और शिव मंदिर तथा इससे कुछ दूरी पर एक भैरव मंदिर है। मंदिर के अवशेषों से प्राप्त अनेक सुंदर कलाकृतियाँ, मूर्तियाँ तथा स्तंभ सीकर के वास्तु संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

प्रकाश ने खींचा था औरंगजेब का ध्यान:
भक्तों इतिहासकारों का कहना है कि हर्षनाथ के प्राचीन शिव मंदिर पर एक विशाल दीपक जलता था। जिसे जंजीरों व चखियों के जरिये ऊपर चढ़ाया जाता था। इस दीपक का प्रकाश सैंकड़ों किलोमीटर दूर से देखा जा सकता था। जिसके प्रकाश को देखकर औरंगजेब ने खंडेला अभियान के दौरान संवत 1739 में आक्रमण करके इस मंदिर सहित यहाँ के सभी मंदिरों को विध्वंस करके खंड खंड कर दिया था।

वर्तमान मंदिर:
भक्तों हर्षनाथ का वर्तमान मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना है। जो औरंगजेब के आक्रमण के बाद विक्रम संवत 1781 में हर्ष पर्वत के ऊपर बना दूसरा शिव मंदिर है। इसका नवनिर्माण सीकर के शासक राव शिवसिंह ने, महात्मा शिवपुरी के आदेश पर, पुराने मंदिर के बचे हुए अवशेषों से करवाया था जिससे यह मंदिर पूर्ववत भव्य व दिव्य लगता है। कहा जाता है कि राव शिव सिंह का जन्म महात्मा शिवपुरी के आशिर्वाद से ही हुआ था।

3000 फीट की ऊंचाई पर:
भक्तों हर्षनाथ मंदिर के निर्माण के लिए इस स्थान का चुनाव बड़ी समझदारी तथा दूरदर्शिता को प्रमाणित करता है क्योंकि मंदिर की नींव रखने के लिए पर्वत के अंतिम भाग को चुना गया है। यह स्थान समुद्रतल से लगभग 914.4 मीटर यानि 3000 फीट की ऊचाई पर स्थित है। यहां से दूर दूर बसे नगर तथा गांव स्पष्ट दिखाई देते है। इस मंदिर से कुछ दूरी पर खारे पानी का एक विस्तृत और तालाब है। जो यहाँ आनेवाले सैलानियों और पर्यटकों को आनंदित करता है।

पंचमुखी मूर्ति:
भक्तों हर्षनाथ मंदिर में भगवान शिव की जो पंचमुखी मूर्ति विराजित है। वो भगवान शिव की प्राचीनतम व दुर्लभतम मूर्ति है। इस मूर्ति के समान सुंदर, आकर्षक, भव्य, दिव्य व विशाल शिव जी की मूर्ति पूरे विश्व में कहीं और नहीं है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखने के लिए भगवान शिव ने अपना यह पंचमुखी रूप धारण किया था।

शिव का नाम हर्षनाथ:
भक्तों कहा जाता है कि एकबार राक्षस त्रिपुरासुरों (तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली) ने स्वर्गलोक अपना आधिपत्य जमा लिया। उन्होने देवराज इन्द्र सहित सभी देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ दिया। सभी देवता इस पहाड़ी पर आए और भगवान शिव समक्ष रक्षा की गुहार लगाई। इससे भगवान शिव अत्यंत कुपित हुये और अपने धनुष पिनाक के एक ही वां से त्रिपुरासुरों का वध कर दिया। भगवान शिव के इस कार्य से सभी देवताओं को बड़ा हर्ष हुआ। इसीलिए देवताओं ने इस पहाड़ी को हर्षगिरि तथा इस पहाड़ी पर विराजमान भगवान शिव को हर्षनाथ का नाम दिया।

भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन ! 🙏

इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏

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