आयुर्वेद के अनुसार भोजन ग्रहण करने के नियम | आयुर्वेद के अनुसार आहार | सात्विक जीवन | तिलक 🙏

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हरी ॐ!

सात्विक जीवन में आपका स्वागत है।

आहारसम्भवं वस्तु रोगाश्चाहारसम्भवाः|
अर्थ: अच्छा स्वास्थ्य और रोग दोनो ही आहार के अधीन है।

इसलिए स्वस्थ जीवन के लिए हितकर आहार के चयन के साथ साथ, आहार उचित प्रकार से ग्रहण करना भी जरूरी है । किस प्रकार का आहार लेना है, किस तरह से ग्रहण करना है इन सभी नियमों को आयुर्वेद में, आहार विधि-विधान के रुप मैं वर्णित किया गया है। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग आहार चयन पर विशेष ध्यान देते है लेकिन उसी आहार का सेवन किस प्रकार से करना, इस पर ध्यान नहीं देते ।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन करने के नियम-

पहला नियम- उष्णम् अश्नीयत् जिसका र्थ है उष्ण आहार सेवन।
ताजा और गर्म भोजन करने से भोजन में स्वाद ज्ञात होता है।अग्नि तीव्र होती है। शीघ्र भोजन का पाचन एवं वायु का अनुलोमन होता है। साथ ही, उष्ण भोजन सेवन से कफ दोष का भी शमन होता है।

दूसरा नियम- स्निग्धम् अश्नीयात् यानी स्निग्ध आहार सेवन-
स्निग्ध आहार का अर्थ है ऐसे भोज्य पदार्थ जो शरीर में संगधता उत्पन्न करे जैसे घी, दही, दुग्ध, माखन, पर केवल वही स्निग्ध आहार स्वास्थ्य हितकर है जिसमे हेल्थी फैट्स है। आहार में स्निग्धता होने से, अन्न में स्वाद उत्पन्न होता है। अग्नि (जरणशक्ति) तीव्र करता है, आहार का पाक शीघ्र हो जाता है। शरीरमुपचिनोति दृढीकरोतीन्द्रिययाणि - शरीर की वृद्धि करता है और इन्द्रियों को दृढ़ करता है। स्निग्ध भोजन बलाभिवृद्धि और वर्णप्रसादं का कार्य भी करता है यानी शारीरिक बल की वृद्धि और त्वक वर्ण/ स्किन को ठीक करता है।

तीसरा नियम- मात्रावत् अश्नीयात यानि मात्रा पूर्वक, प्रॉपर मात्रा में भोजन ग्रहण करना। इस प्रकार किया भोजन त्रिदोषों को (प्रकोपित) नहीं करता है और आयु को बढ़ाता है।

उचित मात्रा में किए भोजन के संदर्भ में कहा गया है:
सुखं गुदमनुपर्येति-उचित रूप से पाक को प्राप्त हुआ, आहार, अन्त में अवशिष्ट भाग मल के रूप में गुद द्वारा बिना कष्ट के बाहर निर्गमन होता है।
न च उष्माणमुपहन्ति-अग्नि को नष्ट नहीं करता है। और अव्यथं च परिपाकमेति यानी आहार बिना किसी प्रकार के उपद्रव से पच जाता है।

चौथा नियम- जीर्णम् अश्नीयात् यानी जीर्ण होने पर भोजन करना ।
यदि पूर्व में खाए हुए भोजन का पाक नही हुआ है और पुन: भोजन किया जाए तो, पूर्व में खाए हुआ आहार का अपरिपक्व रस बाद में खाये हुए आहार रस से मिश्रित होकर सभी दोष को प्रकुपित करता है और स्वास्थ्य संबंधी विकार उत्पन्न करता है। इसलिए जीर्ण आहार लक्षण प्राप्त होने के बाद ही भोजन करना चाहिए।

पाँचवा नियम- वीर्य अविरुद्धम् अश्नीयात्: यानी ऐसे 2 यां उस से अधिक भोज्य पदार्थों का सेवन जो साथ में शरीर पर अहितकर प्रभाव नहीं डालते है, जैसे दाल और नामक, दूध और मिश्री, दही और मिश्री, दही और आमला।
इसके विपरीत - खट्टे फल और दुग्ध से निर्मित Shakes यां Smoothies, नमकीन और दुग्ध का एक साथ सेवन।
अत्यधिक गर्म जल और शहद का एक साथ सेवन ! यह सभी वीर्य विरुद्ध है और इनका सेवन कभी नहीं करना चाहिए।

छठा नियम- इष्ट देशे इष्ट सर्वोपकरणम् अश्नीयात्ः- इष्ट देश में और इष्ट उपकरण युक्त भोजन करना। ईष्ट देश का अर्थ है मन के अनुकूल स्थान । मन के अनुकूल भोजन सामग्री ईष्ट उपकरण के अन्तर्गत आते है यानी उचित भोजन पात्रों का उपयोग करना । इस प्रकार भोजन करने से मानसिक विकार नहीं होते ह तथा आहार सेवन करते समय काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, उद्वेग आदि मनोविघात भावों को ग्रहण नहीं होता ।

सातवाँ नियम- न अतिदुतम अश्नीयात् यानी भोजन बहुत जल्दी जल्दी नहीं करना चाहिए, अति शीघ्रता से भोजन करने से अप्रतिष्ठानम्-उचित रूप से आहार आमाशयादि अपने स्थान में नहीं ठहरता है और भोजन के पाचन में रुकावट आती है।
साद्गुण्यात्-
जल्दी जाली भोजन के सेवन से यदि भोजन में यदि कोई दोष है, कुछ सेवनीय द्रव्य जैसे कंकड़ है तो उनका पता नहीं चलता।
और ना भोजन के गुणों की गुणों की प्राप्ति होती है। अतः अतिशीघ्रता से आहार ग्रहण नहीं करना चाहिये।

आँठवा नियम-
न अतिविलम्बितम् अश्नीयात् इसका अर्थ है आहार अधिक धीरे-धीर नहीं लेना चाहिए। अत्यधिक धीरे भोजन करने से तृप्ति नहीं होती है।अधिक मात्रा में आहार सेवन होता है। आहार शीतल हो जाता है और आहार पाक ठीक से नही हो जाता है।

नौवां नियम- अजलपन, अहसन तन्मना भुञ्जीतः
भोजन करते समय बोलना और हंसना, इस प्रकार के कर्मो का त्याग करना चाहिए और मन लगाकर भोजन करना चाहिए ! भोजन के हित-अहित, लाभ हानि को जानकर ही आहार सेवन करना चाहिये।

हमें आशा है के आज की इस वीडियो के माध्यम से दी गई जानकारी आप सब के लिये लाभकारी होगी। स्वस्थ रहें प्रसन्न रहें। दिव्य शक्ति की कृपा हम सब पर बनी रहे। हरी ॐ तत् सत्।

श्रेय:
डॉ. नेहल शर्मा
आयुर्वेदिक चिकित्सक

Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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