मसरूर रॉक कट मंदिर– जहां पांडवों ने बनाया था स्वर्ग जाने का रास्ता। 4K। दर्शन
भक्तों! सादर नमस्कार! प्रणाम, बहुत बहुत वंदन और अभिनन्दन! भक्तों! हिमाचल प्रदेश की भूमि के कण कण में देवी देवताओं का वास माना जाता हैं। कदाचित इसीलिए इसे देवभूमि की संज्ञा प्राप्त है। यह एक ऐसा प्रदेश है जहां कई रहस्यमयी धाम, तीर्थ और मंदिर है, और उनसे जुड़ी हुई अनगिनत धार्मिक व पौराणिक कथाएं हैं। जो न केवल सभी को अचंभित कर देती है बल्कि अपने अनवरत चमत्कारों के सम्मुख आधुनिकता और तार्किकता को नतमस्तक कर देती है। भक्तों! आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के जिस दर्शनीय, रहस्यमयी और सुविख्यात मंदिर की यात्रा पर ले जा रहे हैं। उसका नाम है मसरूर रॉक कट मंदिर.
कहाँ स्थित है:
भक्तों! मसरूर रॉक कट मंदिर, हिमाचल राज्य के, कांगड़ा जिले में ब्यास नदी की कांगड़ा घाटी पर बसे मसरूर गाँव में स्थित है। मसरूर रॉक कट टेंपल के नाम से मशहूर उन्नीस मंदिरों में से सोलह मंदिरों को चट्टान के एक टुकड़े से तराश कर बनाया गया था, जबकि दो मंदिर मुख्य परिसर के दोनों ओर स्वतंत्र रूप से खड़े हैं। यह राष्ट्रीय धरोहर है।
अजंता-एलोरा ऑफ हिमाचल:
भक्तों! मसरूर को अजंता-एलोरा ऑफ हिमाचल भी कहा जाता है। हालांकि ये एलोरा से भी पुराने हैं। पहाड़ काट कर गर्भ गृह, मूर्तियां, सीढ़ियां और दरवाजे बनाए गये हैं। मंदिर के बिल्कुल सामने मसरूर झील है जो मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगाती है।
द्रौपदी के लिए झील:
भक्तों! मसरूर मंदिर के बिल्कुल सामने एक बहुत खूबसूरत झील है, जिसे मसरूर झील के नाम से जाना जाता है। इस झील में कुछ मंदिरों के प्रतिबिंब दिखाई देते हैं जो अत्यंत मनोहर और सुंदर लगते हैं। इस झील से जुड़ी जनश्रुतियों के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था और मंदिर के सामने खूबसूरत झील को पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी के लिए बनवाया गया था।
अनोखा मंदिर:
भक्तों! मसरूर रॉक मंदिर समुद्र तल से लगभग 2500 फुट की ऊंचाई पर एक ही चट्टान को काट कर बना देश का एकमात्र मंदिर है। मसरूर रॉक मंदिर जैसी कला आज ढूढ़ने पर भी नहीं मिलती। सबसे अहम बात यह कलाकृतियां चट्टानों के ऊपर, बिना चट्टानों को तोड़े फोड़े तराश कर बनाई गई हैं। उस समय जिन्होने इस मंदिर का निर्माण किया होगा। जिन कलाकारों ने इन मंदिरों को बनाया होगा। उनकी कलाकृति की कितनी समझ होगी? वो कितने महान कलाकार रहे होंगे? उन वास्तुकारों और शिल्पकारों की महत्वाकांक्षायेँ कितनी विकसित रही होंगी? इसकी कल्पना सहज ही जा सकती है।
स्वर्ग जाने का मार्ग:
भक्तों! मसरूर रॉक मंदिर के मध्य आज भी विशाल पत्थरों के बने दरवाजानुमा द्वार हैं, जिन्हें ‘स्वर्गद्वार’ के नाम से जाना जाता है। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, पांडव अपने स्वर्गारोहण से पहले इसी स्थान पर ठहरे थे, जिसके लिए यहां स्थित पत्थरनुमा दरवाजों को ‘स्वर्ग जाने का मार्ग’ भी कहा जाता है।
लोककथा:
भक्तों! एक स्थानीय लोककथा अनुसार, पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस मंदिर परिसर में काफी समय बिताया था। कहा जाता है कि एक दिन पांडवों के मन में आया कि क्यों न वो स्वर्ग तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करें। अतः उन्होंने एक ही रात में सुबह तक निर्माण कार्य पूरा करने की प्रतिज्ञा कर ली। लेकिन उनके इस प्रतिज्ञा की बात जब देवताओं ने सुना, तो उन्होने जाकर ये खबर अपने राजा इंद्र को सुनाई। जिससे देवराज इंद्रा तनाव में आ गए ... क्योंकि सीढ़ियाँ सभी को आसानी से स्वर्ग तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त कर देती। इसलिए देवराज इंद्र ने अपने एक कौवे रूप धारण किया और भोर होने से पहले जोर से बांग लगा दी। परिणामस्वरूप पांडव स्वर्ग जाने की सीढ़ी को न बना सके। मंदिर परिसर में आज भी अधूरी सीढ़ियाँ मौजूद हैं।
मंदिर में ऐतिहासिक व रोचक तथ्य:
भक्तों! मसरूर रॉक मंदिर समूह की भव्यता और दिव्यता, न केवल यहां के कलाप्रेमी, वास्तुप्रेमी, शिल्पप्रेमी और वैभवशाली साम्राज्य का प्रमाण हैं बल्कि यहां अत्यंत विकसित संस्कृति और विरासत का साक्ष्य भी हैं। इस मदिर के साथ ही एक कारगार भी स्थित है। जिस का सही प्रमाण अभी तक नहीं मिल पाया है। कहा जाता है कि यहाँ कई काँगड़ा के राजाओ ने राज किया करते थे। वो युद्ध में जाने से पहले यहां पूजा अर्चना किया करते थे। अभी भी कांगड़ा राजवंश के लोग इस स्थान में दर्शन पूजन के लिए आते हैं। कई लोग तो इस मंदिर को अपना कुलमंदिर मानते हैं।
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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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