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माँ कालरात्रि, नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में सातवी रूप हैं।
मां कालरात्रि का स्वरूप उनके नाम की तरह की घने अंधकार सा काला है. कालरात्रि मां के तीन नेत्र हैं, जोकि ब्रह्मांड की तरह गोल हैं. मां के इस रूप की सवारी गर्दभ यानी गधा है. उनका ऊपर उठा दाहिना हाथ वर मुद्रा में है, इस तरफ के नीचे वाले हाथ में अभय मुद्रा है।
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते।
रक्तबीज ने शिव से एक वरदान प्राप्त किया जिसके अनुसार यदि उसके शरीर से रक्त की एक बूंद युद्ध के मैदान में गिरती है, तो रक्त से कई रक्तबीज उत्पन्न होंगे और दुश्मनों से लड़ेंगे। इनमें से प्रत्येक रक्तबीज भी बल, रूप और शस्त्र की दृष्टि से दूसरों के समान होगा।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में, रक्तबीज एक असुर था जिसने शुम्भ-निशुम्भ के साथ मिलकर देवी दुर्गा और काली देवी के साथ युद्ध किया। रक्तबीज शुम्भ की सेना का एक राक्षस था । उसे ये वरदान मिला था कि उसके रक्त की पृथ्वी पर गिरी एक बूंद से ही उसके ही जैसा शक्तिशाली राक्षस पैदा हो जायेगा ।
ऐसे में दुर्गा ने अपने तेज से देवी कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और मां कालरात्रि ने उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ।
'ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।'
'ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।'
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