अधिकांश हैलोऐल्केनों में द्विध्रुव आघूर्ण होता है। यह हैलोजन परमाणुओं की इलेक्ट्रॉन आकर्षो प्रकृ...
अधिकांश हैलोऐल्केनों में द्विध्रुव आघूर्ण होता है। यह
हैलोजन परमाणुओं की इलेक्ट्रॉन आकर्षो प्रकृति के कारण होता है। हैलोजन परमाणु पर आंशिक ऋणावेश होता है जबकि शेष अणु पर आंशिक धनावेश होता है। हैलोजन से जुड़ा कार्बन परमाणु नाभिकस्नेही के आकर्षण के केन्द्र के रूप में कार्य करता है। एकाकी युग्म इलेक्ट्रॉन युक्त परमाणु अथवा अणु तथा/अथवा ऋणावेशित स्पीशीज अच्छा नाभिकस्नेही होती है। साथ ही साथ, एक सफल अभिक्रिया के लिए समान महत्तपूर्ण तथ्य यह भी है कि हैलोजन परमाणु एक अच्छा छोड़ने वाला समूह भी है। अधिकांश हैलोऐल्केन अपनी अभिक्रियाओं में इन तथ्यों का पालन करती है।
(+)-1-क्लोरो-1-फेनिल ऐथेन का \( \mathrm{SbCl}_{5} \) की अल्प मात्रा की उपस्थिति में टॉलुईन में मिश्रण रेसिमीकृत होता है। क्योंकि निर्मित होता है
(A) कार्बधनायन
(B) कार्बत्ॠणायन
(C) मुक्त मूलक
(D) कार्बीन
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