चमत्कारी श्री माँ खोड़ियार मंदिर | माटेल मोरबी गुजरात | 4K | दर्शन 🙏
भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और हार्दिक अभिनन्दन! भक्तों! भारत की धरती देवी, देवताओं, संतों और महंतों की धरती है।यहां हर जगह देवी देवताओं और संतों के स्थान हैं, धाम हैं और मंदिर हैं. जिनका इतिहास ही नहीं वर्तमान भी मान्यताओं और परम्पराओं की परिधि में प्रतिष्ठित होकर इस वैज्ञानिक युग को अचंभित कर रहे हैं. ऐसा ही एक मंदिर है खोड़ियार माता मंदिर.
मंदिर के बारे में:
भक्तों गुजरात में खोडियार माता के तीन प्रमुख मंदिर हैं। एक कंठ, दूसरा राजपारा और तीसरा माटेल। हम आपको जिस मंदिर की यात्रा करवाने जा रहे हैं वो मंदिर गुजरात मे मोरबी जिले के वांकानेर तालुका के माटेल गांव में स्थित है। भक्तों माटेल में खोडियार माता का बहुत ही सुप्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है. खोडियार माता का यह स्थान वांकानेर से लगभग 17 किमी उत्तर तथा मोरबी से 26 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित है। हर भक्त यहां भक्ति और आस्था के साथ आता है। इस मंदिर के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा और भक्ति है. इसीलिये लोग दूर-दूर से पैदल चलकर माता के दर्शन को यहाँ आते हैं।
खोडियार माता मंदिर का इतिहास:
खोडियार माता का मंदिर माटेल गांव में स्थित खोडियार माता का यह मंदिर दिखने में छोटा सा दिखाई देता है किन्तु इसकी महिमा बहुत बड़ी है. भक्तों इस मंदिर का इतिहास लगभग 1100 वर्ष पुराना है।
खोडियार माता की प्राकट्य कथा:
कहा जाता है माता खोड़ीयार का प्राकट्य ईस्वी सन 700 में गुजरात के भावनगर जिले के रोइशला गाँव स्थित, ""लेवा-पाटीदार"" जाति के एक किसान ममड़िया गढ़वी नामक एक चारण के घर में हुआ था. बताया जाता है कि भावनगर के तत्कालीन शासक महाराज शीलभद्र और ममड़िया गढ़वी की बड़ी अन्तरंग मित्रता थी. इसी अन्तरंग मित्रता के चलते ममड़िया गढ़वी को यह अधिकार था कि वो किसी भी समय राजा के महल में बिना किसी रोक टोक के प्रवेश कर सकता था. राजा शीलभद्र ममड़िया गढ़वी को अपने मंत्रियों से अधिक चाहते थे. मंत्रियों को यह बात पसंद नहीं थी इसलिए उन्होंने ममड़िया गढ़वी से छुटकारा पाने की योजना बनाई और राजा और रानी को भड़काना आरम्भ किया. राजा पर उनकी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन रानी उनकी बातों में आ गयी।
एक दिन ममड़िया गढ़वी जब महल आया तो द्वारपालों ने उसे रोकते हुए कहा कि “निःसंतान व्यक्ति को राजमहल में प्रवेश करने पर प्रतिबन्ध है”. अतः ममड़िया गढ़वी घर लौट आया. उसने ""कमल पूजा"" करते हुए भगवान शिव से संतान हेतु प्रार्थना कर आत्म बलिदान का संकल्प लिया। जैसे ही वह खुद को मारने लगा था, वैसे ही भगवान् शिव प्रकट हुए और ममड़िया गढ़वी को अपने साथ नागों के राजा नागराज के दर्शन हेतु नागलोक ले गए ।
नागलोक पहुंचकर ममड़िया गढ़वी ने नागराज को अपनी व्यथा कथा सुनाई. उसकी व्यथा कथा सुनने के बाद, भगवान शिव की इच्छा और वरदान से नागराज ने अपनी सात पुत्रियाँ और एक पुत्र ममड़िया गढ़वी को संतान स्वरुप प्रादान करने का आशीर्वाद दिया. कालान्तर ममड़िया गढ़वी को संतान स्वरूप सात पुत्रियाँ अवध, जोगड़, तोगड़, बिजबाई, होलबाई , सोसाई और जानबाई और एक पुत्र मेराखिया का जन्म हुआ.
एक बार मामडिया चारण का पुत्र मेराखिया बाहर खेल रहा था तो उसे एक विषैले सर्प ने डस लिया। ममड़िया गढ़वी ये सुनकर अपनी पत्नी और सातों पुत्रियाँ के साथ रोते पीटते मेराखिया के पास पहुंच गया। उनका रोना पीटना सुन सभी ग्रामीण भी इकट्ठे हो गए. सर्प का विष फैलने से मेराखिया का शरीर काला स्याह पड़ गया था. उसके मुंह से झांग निकल रही थी. सभी मेराखिया के शरीर से विष उतारने का उपक्रम करने लगे. लेकिन सारे उपाय विफल थे तब एक बुजुर्ग ने कहा कि यदि सूर्य उदय से पहले पाताल लोक में नागराज से अमृत का कुंभ लाया जाए तो मेराखिया के प्राण बच सकते है। उसी समय छोटी बहन जानबाई नागराज से अमृत का कुंभ लाने पाताल लोक जाने को तैयार हो गयी। जब जानबाई अमृत कुंभ लेकर आ रही थी। वहां उन्हें पैर में चोट लग गई और वह चलने में असमर्थ थी। इसलिए उन्हें आने में विलम्ब होने लगा. जिससे सभी लोग अत्यधिक चिंता करने लगे। पैर के चोट के कारण चलने में असमर्थ जानबाई एक मगरमच्छ पर सवार होकर मेराखिया के पास पहुंच गई। अमृत पान कर मेराखिया स्वस्थ हो गया. तभी से खोडियार माता का वाहन मगरमच्छ है।
मोगरा देव:
खोडियार माता का वाहन मगरमच्छ होने के कारण गुजरात में कई ऐसे स्थान भी हैं जहाँ लोग मगरमच्छ को ""मोगरा देव"" के रूप में पूजते हैं।
माता खोडियार के प्राकट्य की दूसरी कथा:
भक्तों खोडियार माता के प्राकट्य की दूसरी कथा के अनुसार- माटेल गांव में भूरा भरवाड नामक एक चारण/ ग्वाला रहता था. जो वन में गाय चराया करता था. उसकी एक गाय का दूध प्रतिदिन दुह लिया जाता था। अतः दूध दुहनेवाले का पता लगाने के लिए भूरा ने उस गाय का पीछा किया. उसकी गाय जब माटेल धरा में जाने लगी तो गाय की पूंछ पकडक़र भूरा भी माटेल धरा में गया था। अंदर जाने पर पता चला कि धरा में सोने का मंदिर है और माताजी झूले पर झूल रहीं थी। भूरा ने झूला झूल रही माता से कहा कि “आप प्रतिदिन मेरी गाय का दूध दुह लेती हैं इसलिए मुझे इसका मूल्य दीजिये। तब माताजी ने भूरा भरवाड को ज्वार के दाने दिए।भूरा भरवाड ने ज्वार के दानों को फेंक दिया, लेकिन एक दाना उसके कपड़े में चिपक गया, जो कि सोने का था। वर्तमान में जिस स्थान पर माताजी का मंदिर स्थित है, वहीं माताजी के प्रकट होने की मान्यता है।
श्रेय:
लेखक - याचना अवस्थी
Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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