सतयुग कालीन, प्राचीन श्री रफालेश्वर महादेव मंदिर | पांडवों द्वारा पूजित, चमत्कारी शिवलिंग |4K| दर्शन
हर हर महादेव भक्तों, सनातन धर्म का इतिहास और मान्यता इतनी प्राचीन है कि ये हमारी गणना से भी परे है, हमारे पुराणों में ऐसे प्रसंग आते हैं जहाँ पर समय सीमा की गणना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं. कहा जाता है की कलयुग की अवधि 4 लाख 32 हज़ार वर्ष की है, इससे दुगना यानि 8 लाख 64 हज़ार साल का द्वापर युग था और इससे दुगना 17 लाख 28 हज़ार वर्ष का त्रेता युग, भक्तो सतयुग उसका भी दुगना यानि 34 लाख 56 हज़ार वर्ष का था, अब आप चारो युगो का योग देखे तो 64 लाख 80 हज़ार वर्ष होता है, ऐसे ही 71 बार चारो युगो के चक्र को एक मन्वन्तर, और 14 मन्वन्तर को एक कल्प कहते हैं, कल्प के बाद परार्ध होता है जिससे ब्रह्मा जी की आयु की गणना होती है. इस कार्यक्रम से जुड़े आप सभी भक्तों का तिलक परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. आज हम आपको लेकर जा रहे हैं एक ऐसे मंदिर की यात्रा पर जो अपने में सतयुग से अभी तक के कई युगों की कथाओं को समेटे हुए हैं. वो दिव्य और अति प्राचीन मंदिर है ""रफालेश्वर महादेव मंदिर""
मंदिर के बारे में:
भक्तों, गुजरात के मोरबी ज़िले में, मोरबी शहर से लगभग १४ किलोमीटर दुरी पर स्थित हैं ""श्री रफालेश्वर महादेव मंदिर "". यहाँ महादेव स्वयंभू रूप में विराजमान हैं, भक्तो ये बहुत प्राचीन मंदिर है, कहते हैं. यहाँ पर द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवो ने महादेव की पूजा की थी, माना जाता है. यहाँ पर की गई पूजा पितरों को भी मोक्ष प्रदान करने वाली होती है, यहाँ मंदिर के पास एक बहुत ही प्राचीन कुंड भी है. जो की सतयुग के समय का बताया जाता है. ऐसा कहा जाता है की यहाँ विराजित शिवलिंग पांडवो के समय से भी बहुत पहले का है। इन सभी तथ्यों के अनुसार यहाँ विराजित रफालेश्वर महादेव शिवलिंग एवं कुंड को सतयुग के समय से जोड़ा जाता है।
मंदिर का इतिहास:
भक्तो, इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो कहा जाता है की पांडवो ने यहाँ अपने पितरों की सद्गति के लिए पूजा और कुंड में तर्पण किया था। और एक समय पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराज रिपु द्वारा करवाया गया था जिससे मंदिर का नाम रिपुलेश्वर महादेव पड़ गया था. कालांतर रिपुलेश्वर महादेव अपभ्रंश होकर रफालेश्वर महादेव हो गया. भक्तो, मोरबी के राजपूत राजाओ द्वारा समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा है, महाराज लगधीर जी ने 1946 में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, कहा जाता है की उन्हें स्वप्न में महादेव भोलेनाथ के दर्शन हुए और महादेव ने उन्हें रफालेश्वर महादेव आने की आज्ञा दी , महाराज लगधीर कुछ सैनिको के साथ घोड़े पर सवार होकर यहाँ आये और उन्होंने यहाँ स्वयं भू प्रकट ""श्री रफलेश्वर महादेव"" के दर्शन हुए. दर्शनों के बाद महाराजा लगधीर ने मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य प्रांरभ करा दिया. भक्तों रफालेश्वर महादेव शिवलिंग का इतिहास पांडवो के समय से या उनसे भी पहले से होने की संभावनाएं बतायी जाती हैं. और यहाँ स्थित कुंड भी सतयुग के समय का बताया जाता है. कहते हैं कि सतयुग में इस कुंड का नाम ब्रह्म कुंड, त्रेता में अजमरदन कुंड व द्वापर में कामद कुंड था अब कलयुग में इस कुंड का नाम दुर्गति नाशक कुंड है. मान्यता है कि, इस कुंड में स्नान करने से मनुष्य की तमाम दुर्गतियों से मुक्ति मिल जाती है।
मंदिर परिसर:
भक्तो, “श्री रफलेश्वर मंदिर का परिसर “बहुत ही सुन्दर और विशाल है। मंदिर की शिल्पकला भी दर्शनीय है। मंदिर में विशेष प्रकार के पत्थर को तराशकर लगाया गया है, जो मंदिर की शोभा को बढ़ाता है,मंदिर का प्रवेश द्वार भी बहुत ही आकर्षक है, मंदिर में प्रवेश के बाद सामने बहुत बड़ा प्रागंण है जिसमे एक पीपल का पेड़ और सामने कुंड है, अंदर मंदिर में प्रवेश के साथ ही मुख्य मंदिर में श्री रफालेश्वर महादेव के दर्शन होते हैं, जो भक्तो की समस्त कामनाये पूर्ण करने वाले हैं रफालेश्वर महादेव जी के सामने नंदी जी भी विराजमान हैं। इनके अतिरिक्त मंदिर में अन्य देवी देवताओ की भी भव्य मूर्तियां विराजमान हैं।
मंदिर में मुख्य देव व अन्य देव मूर्तियां:
भक्तो, गर्भ गृह में मुख्य देव श्री रफालेश्वर महादेव का अभिषेक और पूजा होती है, इनकी पूजा कलयुग में समस्त संकटो से बचाती है और श्रदालुओ की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली है, ये भारत में एकलौता मंदिर है जहाँ एक साथ ५ शिवलिंग के दर्शन होते हैं, भक्तो यहाँ पर रफालेश्वर महादेव के अलावा, भीमनाथ महादेव, हाटकेश्वर महादेव, वागेश्वर महादेव, और लघधीश्वर महादेव भी विराजमान हैं, इन्ही के साथ मंदिर में माँ काली और भरैव बाबा की भी मूर्तियां हैं, भगवान गदाधर विष्णु जी का विग्रह भी मंदिर में विराजित है। भक्तो, जो भी भक्त जन अपने कार्य सिद्धि के लिए रफालेश्वर महादेव की शरण में आते हैं वो बड़े ही भक्ति भाव से मंदिर में विराजमान सभी देवों की उपासना करते हैं।
श्रेय:
लेखक - याचना अवस्थी
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