शिवद्वार उमा महेश्वर मंदिर - भगवान शिव ने स्वयं चुना था इस मंदिर का स्थान | 4K | दर्शन 🙏
श्रेय:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम और सादर अभिनन्दन है हमारे इस धर्म, आस्था और अध्यात्म से जुड़े लोकप्रिय कार्यक्रम दर्शन में। भक्तों आज हम अपने कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से आपको एक ऐसे मंदिर की यात्रा करवाने जा रहे हैं, वो भगवान शिव को समर्पित दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के स्थान पर न केवल भगवान् शिव की मूर्ति विराजमान है अपितु जलाभिषेक भी भगवान् शिव की मूर्ति का ही किया जाता है। भक्तों ये अनोखा मंदिर है घोरावल का शिवद्वार मंदिर!
मंदिर के बारे में:
भक्तों सोनभद्र स्थित शिवद्वार मंदिर का एक नाम उमा महेश्वर मंदिर भी है। यह मंदिर पूर्वी दक्षिण पूर्वी उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिला मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज से 40 किलोमीटर, मीरजापुर से 52 किलोमीटर तथा घोरावल से 10 किमी दूर स्थित है। शिवद्वार मंदिर, देवाधिदेव भगवान् शिव और जग्ताजननी माता पार्वती को समर्पित है। भक्तों शिवद्वार मंदिर को गुप्त काशी के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा:
भक्तों! पुराणों के अनुसार- भगवान शिव की विवाह माता सती से हुआ था माता सती के पिता का नाम राजा दक्ष था वो अपने जामाता भगवान शिव को अपने बराबर नहीं मानता था। इसलिए जब दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया तो उन्होंने भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा। यह जानकर माता सती को बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने पिता के पास जाकर से इस अपमान का कारण पूछने हेतु भगवान शिव से आज्ञा मांगी। किन्तु भगवान शिव ने उन्हें वह जाने से मना कर दिया। किन्तु माता सती के बार बार आग्रह करने पर शिव जी ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी। जब सती बिना बुलाए यज्ञस्थल में पहुंची तो उनके पिता दक्ष ने उन्हें अपमानित करते हुए भगवान शिव को भी भला बुरा कहा। जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने यज्ञकुंड में कूद कर आत्मदाह कर लिया। इससे भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अहंकारी दक्ष दण्डित करने हेतु वीरभद्र को प्रकट किया।वीरभद्र ने अहंकारी दक्ष का यज्ञ विध्वंश तो किया ही सिर काटते हुए उसका वध भी कर दिया। भगवान् शिव यज्ञकुंड से माता सती का निकालकर चारों ओर तांडव करने लगे। जिससे महाप्रलय की स्थिति उत्पन्न हो गयी और समूचे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। तब सभी लोग भगवान विष्णु के पास भागे। भगवान विष्णु, भगवान् शिव को शांत करने के उद्देश्य से अपने सुदर्शन चक्र द्वारा माता सती के शव को 51टुकड़ों में विभक्त कर दिया। भगवान शिव का क्रोध कुछ शांत हुआ तो ब्रह्मा जी ने भगवान् शिव से दक्ष प्रजापति को क्षमा करने और जीवनदान देने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी के प्रार्थना पर शिव जी ने अहंकारी दक्ष के शरीर में घमंड का प्रतीक, बकरे का सिर लगा दिया ताकि वो हमेशा “ मैं – मैं” करता रहे। दक्ष प्रजापति को जीवन मिलने से सभी देवी देवता प्रसन्न थे किन्तु भगवान् शिव का मन माता सती के वियोग में अधीर था।मन की अधीरता समाप्त करने के उद्देश्य से भगवान् शिव ने अघोरी का रूप धारण किया और सोनभद्र के अघोरी क्षेत्र में आकर गुप्त साधना की थी। इसीलिए इस क्षेत्र को गुप्त काशी की संज्ञा प्राप्त है।
शिवद्वार नाम क्यों पड़ा:
भक्तों मान्यता है कि भगवान् शिव जब अघोरी का रूप धारण कर यहाँ गुप्त साधना हेतु पधारे तो उन्होंने सबसे पहले अपना कदम इसी स्थान पर रखा। इसीलिये इस स्थान को शिवद्वार के नाम से जाना जाता है।
मंदिर का इतिहास:
भक्तों शिवद्वार का उमा महेश्वर मंदिर 11 वीं शताब्दी के शिल्प कौशल का उत्कृष्ट और शानदार कलाकृति का नमूना है। यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे अद्भुत, प्राचीन, सुप्रसिद्ध, प्रतिष्ठित और बहुमूल्य मंदिर है। इस मंदिर में अन्य देवी - देवताओं की काले पत्थर की मूर्तियां भी रखी हुई हैं।
मंदिर का गर्भगृह:
भक्तों भगवान शिव और जगत्जननी पार्वती को समर्पित शिवद्वार मंदिर के गर्भगृह में भगवान् शिव और माता पार्वती की 11 वीं सदी की काले पत्थर की तीन फुट ऊंची मूर्ति विराजमान है।इस मूर्ति की विशेषता यह है कि इसमें शिव-पार्वती प्रणय मुद्रा में दिखाई पड़ रहे हैं।
मूर्ति का प्राकट्य:
भक्तों सोनभद्र जिले के शिवद्वार उमा महेश्वर मंदिर में विराजमान मूर्ति के बारे में बताया जाता है कि 19वीं सदी के चौथे दशक में सत्द्वारी गाँव का मोती महतों नाम का किसान अपने खेत में हल चला रहा था।इसी दौरान उसके हल का नोंक किसी भारी वस्तु में टकराकर फंस गया। हल जहां फंसा था वहां से अचानक रक्त, दूध और जल की धारा प्रवाहित होने लगी। मोती महतों भाग कर गांव में गया और लोगों को जनकारी दी। गावं वाले जब उस स्थान की मिट्टी को हटाये तो वहां पर काले पत्थरो से निर्मित भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति प्राप्त थी। लोगों ने मूर्ति को हटाने का प्रयास किया किन्तु कोई भी मूर्ति को टस से मस नहीं कर पाया।लिहाजा लोग मायूस होकर लौट आये।
शिव जी ने स्वयम चुना मंदिर का स्थान:
भक्तों उसी रात किसान मोती महतों को स्वप्न में भगवान् शिव का दर्शन हुआ। जिसमें भगवान् शिव ने आदेश देते हुए कहा कि “घने बगीचे के पास स्थित श्मशान भूमि में मेरा मंदिर बनाकर प्राप्त हुई मूर्ति को प्रतिष्ठित किया जाये। उसके बाद उस किसान ने सुबह स्वप्न की बात सभी को बतायी। गाँव के सभी लोग किसान मोती महतों को स्वप्न में शिव जी द्वारा बतायी गयी जमीन की तलाश करने लगे। कड़े परिश्रम के बाद वह स्थान मिल ही गया। जहाँ श्मशान भी था और एक घना बगीचा भी था। लोगों ने वहीं एक पेड़ के नीचे उमामहेश्वर मूर्ति स्थापित कर पूजा आराधना शुरू कर दी।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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