भगवान शंकर का भगवान कृष्ण के बाल रूप के दर्शन के लिए गोकुल पधारना | श्री कृष्ण | दिव्य कथाएँ
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!
Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0
संसार में यदि मनुष्य को कर्म के साथ धर्म के सही सामंजस्य को समझना हो तो इसके लिए श्रीमद् भगवत गीता से बड़ा ग्रंथ नहीं हो सकता। यह ग्रंथ दिव्य है इसीलिए विश्व में सनातन धर्म के अलावा अन्य धर्मों को मानने वाले मनुष्य भी श्री मद् भगवत गीता और श्री कृष्ण के अनुयायी है। सनातन धर्म में श्री भगवान कृष्ण को सोलह कलाओं से पूर्ण अवतार माना गया है। मानव जीवन से जुड़े सभी प्रश्नो का उत्तर आपको श्रीकृष्ण के जीवन से मिल सकता है। श्री भगवत् गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद व उपदेशों का संकलन है। इन उपदेशों को आप अपने जीवन में समाहित कर परमात्मा से जुड़ सकते है। “तिलक” अपने संकलन “दिव्य कथाएं” के इस चरण में श्री कृष्ण से जुड़े प्रसंगों को आपके समक्ष प्रस्तुत करेगा। भक्ति भाव से इनका आनन्द लीजिये और तिलक से जुड़े रहिये।
एक दिन देव ऋषि नारद जी से बाल कृष्ण की अदुभुत लीलाओं का वर्णन सुनकर भगवान शंकर के मन में अपने भगवान के बाल रूप का दर्शन करने हेतु भिक्षुक साधु का वेश धर कर गोकुल नन्दराय के घर पहुँच जाते है। भगवान श्री कृष्ण पूरणमासी बुआ का रूप धर कर गोकुल में रह रही देवी योगमाया को भगवान शंकर के गोकुल आने के बारे में पहले ही बता देते है। द्वार पर खड़े भिक्षुक को देख कर पड़ोसन काकी यशोदा से उसे भिक्षा देने का आग्रह करती है। यशोदा अन्न और मोतियों का हार भिक्षुक को देने के ले कर आती है इस पर भिक्षुक रूपी भगवान शंकर यशोदा से भिक्षा के रूप में केवल उसके लल्ला के दर्शन की लालसा व्यक्त करते हैं। यशोदा अपने पूर्व अनुभव के ध्यान में रखते हुए अपने लल्ला को बाहर लाने से कठोरतापूर्वक मना कर देती है। लेकिन पूरणमासी बुआ से भिक्षुक की महिमा जानने का बाद यशोदा बाल कृष्ण को भिक्षुक से आशीर्वाद दिलाने के लिये घर के आंगन में ले कर आती है। पूरणमासी बुआ भिक्षुक के चरण रज (पैरों की धूल) बालक कृष्ण के मस्तिक पर लगा देती है। भिक्षुक रूपी भगवान शंकर बाल कृष्ण के चरण स्पर्श का आनन्द लेकर वापस चले जाते है। इस वृतान्त को देख गोलोक में बैठे भगवान कृष्ण स्वयं को भगवान शंकर का ऋणी और बाल रूप में दर्शन देने पर पर्वत पर विराजमान भगवान शंकर स्वयं को भगवान कृष्ण का ऋणी बताते है।
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