हम ही पहुंचा रहे नुकसान
पहाड़ केवल शानदार नजारों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स योग्य तस्वीरों के लिए नहीं होते हैं। पहाड़ों में जीवन जीना कठिन भी होता है। चलना और बुनियादी काम जैसे कुकिंग और खेती के लिए भी जबरदस्त शारीरिक श्रम और स्टैमिना की आवश्यकता होती है। उनका इकोसिस्टम बहुत नाजुक होता है, जिसे संभालने और संरक्षित करने की जरूरत होती है। पहाड़ों पर जब बारिश पड़ती है या बर्फ गिरती है तो एक जगह से दूसरी जगह जाना और चीजों की उपलब्धता चिंता का विषय बन जाते हैं।
प्राकृतिक आपदाएं जैसे फ्लैश फ्लड्स, भू-स्खलन, हिम-स्खलन आदि जीवन को पूरी तरह से रोक देते हैं, जिससे सुरक्षा और जीविकोपार्जन के लिए संकट उत्पन्न हो जाते हैं। अकसर ये आपदाएं मानव-निर्मित भी होती हैं। गैर-जिम्मेदाराना पर्यटन, स्वार्थी कमर्शियल लक्ष्य, बिना सोचे-समझे पेड़ों को काटना, अनियोजित शहरीकरण आदि कारण हैं, जिनसे पहाड़ों और पहाड़ी जीवन को बहुत नुकसान पहुंच रहा है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर जैसे हिमालय पहाड़ के राज्यों में हाल के वर्षों में जो प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिली हैं, वे हमसे सख्ती से कह रही हैं कि प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न मत करो वर्ना प्रकृति का गुस्सा बर्दाश्त नहीं कर पाओगे।