उदयपुर शहर का खजुराहो कहलाने वाला प्राचीन अम्बिका माता जगत मंदिर | 4K | दर्शन 🙏

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श्रेय:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी

भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और सादर अभिनन्दन... भक्तों! हमारे देश के हर गाँव, हर शहर और हर राज्य में एक से बढ़कर एक तीर्थ स्थान हैं, एक से बढ़कर एक पावन धाम हैं... एक से बढ़कर एक मंदिर हैं... जो अपनी आध्यात्मिक शक्ति, प्रभुता, रहस्य और चमत्कार के चलते विश्वभर में प्रसिद्ध हैं, इनमें से कुछ मंदिरों की प्रसिद्धि उनकी शक्ति, प्रभुता, रहस्य और चमत्कार के साथ उनकी वास्तुकला और शिल्पकला के चलते भी है। ऐसा ही एक मंदिर है अंबिका माता मंदिर जगत..

मंदिर के बारे में:
भक्तों अम्बिका मंदिर राजस्थान में उदयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर गिर्वा की पहाडि़यों के बीच बसे कुराबड़ गांव के समीप जगत नामक स्थान पर स्थित है। इस मन्दिर में देवी दुर्गा, अम्बिका माता के रूपमें विराजमान हैं इस मंदिर में दुर्गा माता के अलावा कई अन्य देवी देवताओ की मूर्तियाँ है। कहा जाता हैं कि इस मंदिर में सैकड़ों वर्षों से शक्ति प्रदात्री माँ दुर्गा की पूजा अम्बिका माता के रूप में होती आ रही है। संभवतः इसीलिए इस मंदिर को प्राचीन शक्तिपीठ की मान्यता प्राप्त है।

जगत मंदिर का इतिहास:
भक्तों जगत स्थित अंबिका मंदिर का निर्माण काल खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर से पहले अर्थात विक्रम संवत 961 के आसपास माना जाता है। यहां से प्राप्त प्रतिमाओं के आधार पर इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान पांचवी व छठी शताब्दी में शिव−शक्ति संप्रदाय का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। मंदिर के स्तम्भों पर उत्कीर्ण लेखों से पता चलता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में मेवाड़ के तत्कालीन शासक महारावल अल्लट ने विक्रम संवत् 1017 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।

राजस्थान का खजुराहो जगत मंदिर:
भक्तों उदयपुर के जगत गाँव स्थित अम्बिका माता मंदिर को मेवाड़ का खजुराहो कहा जाता है। क्योंकि इस मंदिर की वास्तुकला, मूर्तिकला और शिल्पकला भी खजुराहो की भांति अद्भुत और जीवंत है। इस मंदिर की मूर्तियों का लालित्य, मुद्रा, और भाव भंगिमाएँ देखते ही बनती हैं। नागर शैली में बने सी मंदिर का आकर्षण इसे खजुराहो और कोणार्क मंदिरों की श्रेणी में ला खड़ा करता है।

मंदिर की मूर्तिकला:
भक्तों जगत मंदिर में जहाँ एक तरफ वीणाधारिणी देवी सरस्वती, नृत्यभाव में गणपति, महिषासुरमर्दिनी, नवदुर्गा, यम, कुबेर, वायु, इन्द्र, वरूण आदि देवी देवताओं की मनोहर मूर्तियाँ हैं तो दूसरी तरफ प्रणयभाव में युगल, शिशुक्रीड़ा करती, अंगड़ाई लेती और दर्पण निहारती नायिकाएं हैं… इतना ही नहीं गायन, वादन और नृत्य में रत कलाकारों की और पूजन सामग्री सजाये रमणियों आदि की अचंभित कर देने वाली कलात्मक प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर के अधिष्ठान, गर्भगृह, स्तम्भ, छत, झरोखे एवं देहरी का शिल्प−सौन्दर्य देखते ही बनता है। अद्भुत मूर्तिकला और वास्तुकला के चलते जगत के अंबिका माता मंदिर को राजस्थान के मंदिरों की मणिमाला कहा जा सकता है।

मंदिर परिसर:
भक्तों अंबिका माता मंदिर परिसर करीब 150 फीट लम्बे ऊंचे परकोटे से घिरा है। मंदिर में प्रवेश करते ही, दुमंजिले प्रवेश मण्डप की बाहरी दीवारों पर, प्रणय मुद्रा में नर−नारी, द्वार स्तम्भों पर अष्ठमातृका, रोचक-कीचक तथा मण्डप की छत पर समुद्र मंथन के दृश्यांकन न केवल सुंदर, मनमोहक व दर्शनीय हैं अपितु अद्भुत, अनुपम और अद्वितीय भी हैं। जहां छत के मध्य में पद्मकेसर का अंकन है तो वहीं स्तम्भ के ऊपर कमल की आकृति बनी है। मण्डप में दोनों ओर हवा तथा प्रकाश के लिए पत्थर की कलात्मक जालियां लगी हैं।

मंदिर का आंतरिक भाग:
भक्तों अंबिका माता मंदिर जगत के प्रवेश मण्डप और मुख्य मंदिर के बीच में, 50 फीट की दूरी पर एक खुला आंगन है। सभा मण्डप का बाहरी भाग दिग्पाल, सुर−सुंदरी, विभिन्न भावों में रमणियों, वीणाधारिणी, सरस्वती, विविध देवी प्रतिमाओं की सैंकड़ों मूर्तियों से सुसज्जित है। मंदिर के दायीं तरफ पूर्व दिशा में जहां नृत्यरत गणेश जी की प्रतिमा तो वहीं मंदिर के पार्श्व अर्थात पश्चिम दिशा में महिषासुर मर्दिनी की मनोहारी प्रतिमा है। उत्तर एवं दक्षिण दिशा में कई अन्य देवी देवतारों की प्रतिमाएं हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों के ऊपर नीचे कीचक मुख, गज श्रृंखला एवं कंगूरों की कारीगरी देखते ही बनती है। ये सभी प्रतिमाएं स्थानीय नीले−हरे रंग के पारेवा पाषाण में तराशी गई हैं।

गर्भगृह:
भक्तों अंबिका माता मंदिर जगत में गर्भगृह, सभा मंडप, जगमोहन और पंचरथ शिखर हैं। इस मंदिर के सौन्दर्य की तुलना आहाड़ मंदिरों से की जाती है। पत्तों और फूलों की नक्काशी से सुसज्जित गर्भगृह की प्रधान पीठिका पर अम्बिका माता की मूर्ति विराजमान हैं।

नृत्यरत गणेश मूर्ति:
भक्तों अम्बिका मंदिर के सभा मण्डप में नृत्यरत गणेश जी की मूर्ति है। इस गणेश मूर्ति त्रिभंगी अवस्था में प्रतिष्ठित है। कभी कभी तो यह गणेश मूर्ति, ताण्डवरत भगवान शिव की तरह है। गणेश जी के गले में कण्ठमाल, वैजयंतीमाल और कंधे पर माणिक की यज्ञोपवीत, अधो भाग में धोती धारण किए हुए हैं।

भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन !
🙏

इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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