रमण रेती आश्रम- यहाँ बचपन में भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं संग आते थे खेलने और गाय चराने | 4K | दर्शन🙏

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संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी

भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और सादर अभिनन्दन! भक्तों हम आपको अपने लोकप्रिय कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से निरंतर सुप्रसिद्ध धामों, मंदिरों और आश्रमों की यात्रा करवाते आये हैं। आज हम आपको जिस दिव्य स्थान की यात्रा करवाने जा रहे हैं। वो तपस्यारत साधू संतों की तपस्थली के साथ साथ बालस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण की क्रीडास्थली भी है। भगवान् श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं का प्रत्यक्षदर्शी बना वो पावन धाम है मथुरा वृन्दावन के बीच स्थित जग विख्यात रमण रेती आश्रम।

आश्रम के बारे में: भक्तों रमण रेती वह स्थान है जहाँ से श्रीधाम वृन्दावन की सीमा प्रारंभ होती है। यह मथुरा से लगभग 13 किलोमीटर दूर गोकुल स्थित आश्रम है। एक विशाल भूभाग में फैले इस धार्मिक और आध्यात्मिक अभयारण्य को रमण वन और रमन रेती के नाम से जाना जाता है। जहाँ एक तरफ कुछ खूबसूरत मंदिर हैं, पर्णकुटीर हैं, वन है, उपवन हैं, सरोवर है, कूप है और साधु संत दिखते हैं तो वहीं धूल स्नान करते श्रद्धालु भक्त, कुलांचे मारते हिरण, गीत गाती कोयल, तान सुनाती बुलबुल तथा निर्भय होकर नाचते मोर भी दिखते हैं। इन सभी को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों यह सभी मिलकर हजारों वर्षों से इस पवित्र स्थान का महिमागान करते आ रहे हैं।

श्रीकृष्ण क्रीडास्थली: भक्तों रमन रेती के बारे में मान्यता है कि ये भगवन श्रीकृष्ण की क्रीडास्थाली है यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम जी और बाल सखाओं के साथ गाय चराने आया करते थे।यहाँ की धूल में खेलते थे, लोटते थे और सखाओं के साथ लुकाछुपी और आँख मिचौली जैसे भांति भांति के खेल खेला करते थे। भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं की प्रत्यक्षदर्शी रहे इस स्थान की पवित्र रेत भगवान् के भक्तों और श्रद्धालुओं को आकर्षित तो करती ही है, आहलादित और आनंदित भी करती है।

रमण रेती की महिमा: भक्तों कहा जाता है कि “रमण रेती लोट्यो नहीं, कियो न जमुना पान। रे नर तू जान्यो नहीं ब्रज को तत्व महान” अर्थात जिसने रमण रेती की रेत में लोटा नहीं, जमुना जी के जल का पान नहीं किया, वो ब्रज के महत्व को नहिं समझ सकता। भक्तों रमण रेती की महिमा इतनी है कि श्रीधाम वृंदावन अथवा ब्रज 84 कोस की यात्रा पर आनेवाला प्रत्येक व्यक्ति रमणरेती की पावन धूल अपने माथे पर लगाना अपना सौभाग्य समझता है। क्योंकि मान्यता है कि भगवान् बालकृष्ण जिस धूल पर चले हैं वो अत्यंत पवित्र है। इसलिए आज भी मन्दिर के पीछे और सरोवर के सामने मौजूद विशाल मैदान की रेत को बच्चे से लेकर बूढ़े तक अपने शीश पर धारण करते हैं, पवित्र होने की कामना करते हुए रमण रेती की धूल पर लोटते हैं, अपने शरीर पर मलते हैं और अपने साथ घर भी ले जाते हैं ताकि उनके स्वजन और कुटुंबी भी पवित्र हो सकें।

रमण रेती का इतिहास: भक्तों गोकुल स्थित रमण रेती का इतिहास और महत्त्व भगवान् श्रीकृष्ण के बाल्यकाल से जुड़ा है। वो नन्दभवन से प्रतिदिन यहाँ गाय चराने आते थे। इसलिए इस स्थान को उतना ही प्राचीन माना जाता है जितना भगवान् श्रीकृष्ण का अवतरण दिवस है अर्थात रमण रेती का इतिहास और महत्व लगभग 5500 से भी पुराना है। कालांतर घनघोर जंगल होने के कारण लोगों का आना जाना बंद हो गया जिससे ये स्थान लुप्तप्राय हो गया था।

रमण रेती की खोज: भक्तों रमन रेती की खोज पन्द्रहवी सदी में स्वामी वल्लभाचार्य जी महाराज द्वारा की गयी थी। कहा जाता है कि जब धरा धाम में स्वामी वल्लभाचार्य जी का प्रादुर्भाव हुआ तो वे शास्त्रों के निर्देशानुसार ब्रजमंडल में भगवान् श्रीकृष्ण के लीलास्थलों को खोजने और चिन्हित करने के प्रयास में जुटे थे। उसी क्रम में स्वामी जी ने इस दिव्य स्थान को भी खोज निकाला

रेत से होती हैं बीमारियाँ दूर: भक्तों गोकुल के रमण रेती आश्रम परिसर में हर तरफ रेत ही रेत है। यहां जो भी कृष्ण भक्त आता है, बिना रेत में लोटे नहीं जाता। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने बाल रूप में इस रेत पर लीलाएं की थी इसलिए यह रेत अत्यंत पवित्र मानी जाती है। लोगों को विश्वास है कि यहाँ की पवित्र रेत पर लोटने से, इसे शरीर पर मलने से कई असाध्य बीमारियां दूर हो जाती हैं।

यहाँ घर बनाने से बनता है घर: भक्तों रमण रेती आने वाले सभी श्रद्धालु यहाँ की रेत पर अपना घर बनाते हैं क्योंकि मान्यता है कि रमन रेती की रेत पर जो भक्त अपना घर बनाते हैं भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से उनका स्वयं का घर बनाने का मनोरथ अवश्य सिद्ध होता है।

दर्शन का समय: भक्तों गोकुल स्थित रमण रेती आश्रम प्रतिदिन भक्तों के लिए सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक तथा शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। अतः आप इस समयावधि में किसी भी दिन मंदिर जाकर दर्शन पूजन कर सकते हैं।

रमण रेती की रेत की विशेषता: भक्तों रमण रेती के अन्दर आने वाले किसी भी भक्त को जूता चप्पल पहनने की अनुमति नहीं है इसलिए लोग यहाँ की रेत पर नंगे पैर चलते हैं। यहाँ की कंकड़ पत्थर विहीन चिकनी रेत पर नंगे पांव चलने से कोई असुविधा न होकर सुखद अनुभव होता है।

क्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन !
🙏

इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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