मुहररम 2022 || Daltonganj Muharram || The fire play || milan || Matam
मुहर्रम :(अरबी/उर्दू/फ़ारसी : محرم) इस्लामी वर्ष यानी हिजरी वर्ष का पहला महीना है। हिजरी वर्ष का आरंभ इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। साथ ही इस मास में रोजा रखने की खास अहमियत बयान की है। मुख्तलिफ हदीसों, यानी हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के कौल (कथन) व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। ऐसे ही हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार मुहर्रम का जिक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा। इसे जिन चार पवित्र महीनों में रखा गया है, उनमें से दो महीने मुहर्रम से पहले आते हैं। यह दो मास हैं जीकादा व जिलहिज्ज। एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं। यह कहते समय नबी-ए-करीम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं।
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
इमाम हुसैन और उनके फॉलोअर्स की शहादत की याद में दुनियाभर में शिया मुस्लिम मुहर्रम मनाते हैं। इमाम हुसैन, पैगंबर मोहम्मद के नाती थे, जो कर्बला की जंग में शहीद माने हुए थे। मुहर्रम क्यों मनाया जाता है, इसके लिए हमें तारीख के उस हिस्से में जाना होगा, जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफा का राज था। ये खलीफा पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रमुख नेता होता था। पैगंबर साहब की वफात के बाद चार खलीफा चुने गए थे। लोग आपस में तय करके इसका चुनाव करते थे।
जब आया घोर अत्याचार का दौर
इसके लगभग 50 साल बाद इस्लामी दुनिया में घोर अत्याचार का दौर आया, मक्का से दूर सीरिया के गर्वनर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, उसके काम करने का तरीका बादशाहों जैसा था, जो उस समय इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था, तब इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया। इससे नाराज यजीद ने अपने राज्यपाल वलीद पुत्र अतुवा को फरमान लिखा, 'तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो, अगर वो नहीं माने तो उसका सिर काटकर मेरे पास भेजा जाए।'
राज्यपाल ने हुसैन को राजभवन बुलाया और उनको यजीद का फरमान सुनाया। इस पर हुसैन ने कहा- 'मैं एक व्याभिचारी, भ्रष्टाचारी और खुदा रसूल को न मानने वाले यजीद का आदेश नहीं मान सकता।' इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुंचे, ताकि हज पूरा कर सकें। वहां यजीद ने अपने सैनिकों को यात्री बनाकर हुसैन का कत्ल करने के लिए भेजा। इस बात का पता हुसैन को चल गया और लेकिन मक्का ऐसा पवित्र स्थान है, जहां किसी की भी हत्या हराम है।
इसलिए उन्होंने खून-खराबे से बचने के लिए हुसैन ने हज के बजाय उसकी छोटी प्रथा उमरा करके परिवार सहित इराक चले आ गए। मुहर्रम महीने की दो तरीख 61 हिजरी को हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे, नौ तारीख तक यजीद की सेना को सही रास्ते पर लाने के लिए समझाइश देते रहे, लेकिन वो नहीं माने। इसके बाद हुसैन ने कहा- 'तुम मुझे एक रात की मोहलत दो..ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूं' इस रात को 'आशुर की रात' कहा जाता है, गले दिन
जंग में हुसैन के 72 फॉलोअर्स मारे गए।
तब सिर्फ हुसैन अकेले रह गए थे, लेकिन तभी अचानक खेमे में शोर सुना, उनका छह महीने का बेटा अली असगर प्यास से बेहाल था। हुसैन उसे हाथों में उठाकर मैदान-ए-कर्बला में ले आए। उन्होंने यजीद की फौज से बेटे को पानी पिलाने के लिए कहा, लेकिन फौज नहीं मानी और बेटे ने हुसैन की हाथों में तड़प कर दम तोड़ दिया। इसके बाद भूखे-प्यासे हजरत इमाम हुसैन का भी कत्ल कर दिया। हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान कुर्बान की थी। इस इसे आशुर यानी मातम का दिन कहा जाता है, इराक की राजधानी बगदाद के दक्षिण पश्चिम के कर्बला में इमाम हुसैन और इमाम अब्बास के तीर्थ स्थल हैं।
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Song: Elektronomia - Limitless [NCS Release]
Music provided by NoCopyrightSounds.
Video: https://youtu.be/cNcy3J4x62M