
रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 29 - श्री कृष्ण ने राधा का अहंकार तोड़ा
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बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।
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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 29 - Shri Krishna breaks Radha's ego
राधा के परिधान पहनने के बाद कृष्ण राधा अपनी मुरली देते हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिये कहते हैं कि लो राधे, अब तुम कृष्ण बन गयी हो और मैं राधा। इस पर राधा एक बड़ी गहरी बात कहती हैं। वह अपने दर्द को शब्दों में उकेरते हुए कृष्ण से कहती हैं कि उन्होंने तो राधा का केवल बाहरी रूप धारण किया है किन्तु उनके वक्ष के भीतर राधा का हृदय कहाँ है जो यह जानता है कि कृष्ण से दूर जाने की पीड़ा क्या होती है। वह कृष्ण को निर्मोही बताती हैं और कहती हैं कि कृष्ण जब मोहजाल में फँसेंगे, तभी राधा बन पायेंगे। बैकुण्ठ धाम में कृष्ण राधा के उलाहने को स्वीकार करते हैं किन्तु कृष्ण राधा के अस्तित्व और आत्मा-शरीर का दर्शन समझाते हैं। वह राधा को बताते हैं कि समस्त सृष्टि में वह अकेले हैं। वे ही सृजक हैं और वे ही विनाशक। वह हर जीव में हैं, चाहे वो अच्छा जीव हो या फिर बुरा। इसीलिये अच्छे बनकर वही मारते हैं और जो बुरा जीव मरता है, उसके अन्दर भी वे ही छिपे होते हैं। अतएव यदि कृष्ण वे हैं और राधा भी वे ही हैं। कृष्ण दर्शन को सुनकर कैलाश पर्वत पर बैठे महादेव आनन्दित होते हैं तो आकाश में विचरण कर रहे नारद मुनि स्वयं को धन्य पाते हैं। किन्तु राधा अभी भी तर्क-वितर्क के फेर में हैं। वे पूछती हैं कि यदि कृष्ण और राधा एक हैं तो कृष्ण से एक पल का विछोह भी राधा को तड़पाता क्यों है। कृष्ण समझ जाते हैं कि राधा उनकी आध्यात्मिक गूढ़ बातों की गहराई में नहीं जा पा रही हैं। तब वे एक बहुत साधारण उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार एक फल का आधार पुष्प होता है, पुष्प का आधार पत्ता, पत्ते का आधार वृक्ष होता है और वृक्ष का आधार बीज होता है। यह बीज स्वयं फल से ही निकलता है। कृष्ण राधा से कहते हैं कि इसी प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार वे स्वयं हैं और उनका आधार आप हैं। इस प्रकार कृष्ण सदैव राधा में रहते हैं किन्तु आप माया के भ्रम में आकर कभी मेरे भक्तों से तो कभी गोपियों से ईर्ष्या करने लगती हैं जबकि मुझे हर गोपी में मुझे राधा दिखती है। कृष्ण आगे कहते हैं कि उनकी रची सृष्टि में जब भी दो प्रेमी मिलते हैं, तो वे कोई और नहीं, स्वयं राधा-कृष्ण होते हैं। बावजूद इसके राधा अपने तर्कों का साथ नहीं छोड़ती है और कृष्ण को अपनी प्रेम पीड़ा समझाने के लिये पुनः नये तर्क के साथ कहती हैं कि कृष्ण की माया भले ही सत्य और असत्य के बीच का खेल दिखाये लेकिन जो प्रेम होता है, वह न तो माया है और न खेल। प्रेम का आधार सत्य है और यदि प्रेम सत्य नहीं, तो भक्ति सत्य नहीं। और यदि भक्ति सत्य नहीं तो भगवान भी सत्य नहीं। कृष्ण मुस्कुरा कर अपनी हार स्वीकार करते हैं। इस पर राधा कृष्ण से कहती हैं तो फिर आप मेरे प्रेम के चिर ऋणी हैं। कृष्ण राधा से पूछते हैं कि इस ऋण को चुकाने का क्या साधन हो सकता है। राधा बताती हैं कि जब कृष्ण अपने वक्ष में राधा का हृदय धारण करेंगे और उस हृदय में प्रेम का झंझावात उठेगा, तब उस प्रेम की पीड़ा और पीड़ा में आनन्द का अनुभव प्राप्त करेंगे तब आप स्वयं जान जायेंगे कि राधा के प्रेम का ऋण कैसे चुकाया जा सकता है। तब कृष्ण निश्चय करते हैं कि वह कलियुग में ऐसा अवतार लेंगे जिसमें शरीर कृष्ण का होगा और हृदय राधा का होगा। इस अवतार में वे चैतन्य रूप में कृष्ण-कृष्ण पुकारते हुए द्वीप-द्वीप घूमेंगे। यहाँ धारावाहिक में कलयुग में अवतरित हुए चैतन्य महाप्रभु की कुछ झाँकी दिखायी पड़ती हैं। राधा कृष्ण से कहती हैं कि यदि उस रूप में उन्हें प्रेम की तड़प का पूर्ण अहसास लेना है तो उन्हें मुरली बजाना सिखा दें। दृश्य पुनः धरती के वृन्दावन की तरफ वापस आता हैं जहाँ द्वापर युग के राधा कृष्ण बैठे हैं। श्री कृष्ण राधा के लिए नयी मुरली लाने के लिए कहते हैं और कल से सिखाने की बात कहते हैं तो राधा श्री कृष्ण से उनकी मुरली माँगती हैं और कहती है अपनी मुरली से सिखा दो तो श्री कृष्ण मना कर देते हैं। श्री कृष्ण राधा से कहते हैं की ये मुरली कृष्ण मुरली है इस मुरली से सारा जगत चलता है। मैं यह मुरली बजाउँगा तो जगत का हर भक्त खिंचा चला आएगा और उन्हें तुम सम्भाल नहीं पाओगी। इस बात पर राधा कहती है कि राधा से अधिक प्रेम तुम्हें कोई नहीं कर सकता और श्री कृष्ण के चारों ओर रेखा खिंच कर कहती है कि तुम मुरली बजाओ अगर कोई मुझसे अधिक प्रेम तुमसे करता है तो वो इस रेखा को पार कर सकता है वरना वो इस रेखा को पार करने से पहले ही भस्म हो जाएगा। श्री कृष्ण राधा का अहंकार तोड़ने का निश्चय करके मुरली बजाना शुरू करते हैं तो सभी गोपियाँ वह पहुँच जाती हैं। जिसे देख राधा को बहुत ईर्ष्या होती है और वह उस रेखा को अग्निरेखा में बदल देती है, परंतु गोपियाँ उस अग्निरेखा को भी पार कर जाती हैं। यह देख राधा रोने लगती हैं और कान्हा से क्षमा माँगती हैं और कहती हैं कि मैंने भूल से सिर्फ़ तुम पर अपना अधिकार समझा था। श्री कृष्ण राधा को समझाते हैं कि ये सब गोपियाँ तुम्हारे प्रति मेरे प्रेम के कारण मेरे लिए इतना बड़ा त्याग कर रही हैं क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ और श्री कृष्ण सभी गोपियों में राधा की ही छवि देखते हैं और कहते हैं कि ये सब माया वश अपना अलग-अलग नाम बताती हैं पर मुझे इनमें सिर्फ़ तुम ही दिखाई देती हो।
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